KOTPUTLI-BEHROR: कोटपूतली-बहरोड़ में ‘सुशासन समारोह’ की पोल खुली

KOTPUTLI-BEHROR: कोटपूतली-बहरोड़ में ‘सुशासन समारोह’ की पोल खुली

जिला स्तरीय कार्यक्रम: 74 कुर्सियां लगाई, शामिल हुए 30 लोग

महज औपचारिक साबित हुआ यह आयोजन

कोटपूतली-बहरोड़/सच पत्रिका न्यूज
राजस्थान सरकार की योजनाओं और सुशासन की उपलब्धियों को आमजन तक पहुंचाने के लिए कोटपूतली-बहरोड़ जिले में आयोजित सुशासन समारोह पूरी तरह से औपचारिकता और खानापूर्ति बनकर रह गया। समारोह का हाल कुछ ऐसा रहा कि ना जनता दिखी, ना योजनाओं पर कोई चर्चा हुई, न मंत्री से लेकर संभागीय आयुक्त और कलेक्टर के भाषण हुए और ना ही प्रशासनिक सक्रियता नजर आई। जिस कार्यक्रम का उद्देश्य जनता को जागरुक करना और प्रशासन को जनता के करीब लाना था, उसमें आमजन को ही दूर रखा गया और अधिकांश सरकारी अधिकारी भी मौजूद नहीं थे। सभागार में लगभग 74 कुर्सियां लगी हुई थी, जिस पर 30 लोग ही मौजूद रहे, यह संख्या भी पुलिसकर्मी और स्काउट के बच्चों को मिलाकर थी। कार्यक्रम में जनता की भागीदारी नगण्य थी। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासन को सरकार की योजनाओं में जनता की रुचि पर भरोसा नहीं है। कोटपूतली पंचायत समिति के सभागार में जब सुशासन समारोह शुरु हुआ तो स्थिति बेहद निराशाजनक थी। पूरे हॉल में 74 कुर्सियां और मंत्री से लेकर अफसरों के लिए 4 सोफेलगाए गए थे। समारोह में जिले के प्रभारी मंत्री विजय सिंह चौधरी, संभागीय आयुक्त उर्मिला राजौरिया, कलेक्टर कल्पना अग्रवाल, कोटपूतली विधायक हंसराज पटेल, बानसूर विधायक देवी सिंह शेखावत, एएसपी वैभव शर्मा, एसडीएम बृजेश चौधरी, नगर परिषद आयुक्त धर्मपाल जाट व कुछ अन्य अधिकारी मौजूद थे। स्थिति इतनी खराब थी कि सभागार को भरा दिखाने के लिए स्काउट के बच्चों को बैठाया गया, ताकि तस्वीरों में कार्यक्रम कुछ भरा-पूरा दिखे। फिर भी कुर्सियां खाली रही।

स्वागत और चाय-नाश्ते में सिमटा

कार्यक्रम का समय सुबह 11 बजे का निर्धारित था, लेकिन जिले के प्रभारी मंत्री विजय सिंह चौधरी करीब तीन घंटे की देरी से दोपहर लगभग 2 बजे पहुंचे। इससे कुछ देर पहले ही पहले कलेक्टर और अन्य अधिकारी वहां पहुंचे थे। मंत्री के पहुंचने के बाद पूरा कार्यक्रम उनके और अधिकारियों के केवल स्वागत-सम्मान तथा चाय-नाश्ते तक सीमित रह गया। सुशासन समारोह का उद्देश्य सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों पर चर्चा करना था, लेकिन ना तो किसी योजना की जानकारी दी गई और ना ही किसी तरह की चर्चा हुई। सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जब यह आयोजन जनता को सरकार की योजनाओं की जानकारी देने और सुशासन का संदेश देने के लिए था तो फिर जनता को बुलाने की कोई कोशिश क्यों नहीं की गई। क्या प्रशासन को सरकार की योजनाओं पर भरोसा नहीं है या फिर क्या प्रशासन को अंदाजा था कि जनता इसमें रुचि नहीं लेगी?।

बंद पड़े पंखे, गर्मी से परेशानी

सभागार में बदइंतजामी का आलम यह था कि कुल 8 पंखे लगे थे, लेकिन उनमें से सिर्फ 3 ही चल रहे थे। जहां विधायक हंसराज पटेल और एएसपी वैभव शर्मा बैठे थे, उनके ऊपर लगा पंखा भी बंद था, लेकिन किसी अधिकारी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। ऐसे सवाल यह भी उठता है कि क्या यही है सुशासन है। जब एक जिला स्तरीय सरकारी कार्यक्रम में मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं तो आम जनता के लिए प्रशासन कितना संवेदनशील है? यह खुद-ब-खुद स्पष्ट हो जाता है।

राष्ट्रगान में किसी की जुबान से नहीं निकली आवाज

यह कार्यक्रम मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के राज्य स्तरीय कार्यक्रम से वर्चुअल माध्यम से जुड़ा हुआ था। जब मुख्यमंत्री ने अपना संबोधन दिया और राष्ट्रगान करने के लिए कहा गया तब कोटपूतली में भी मंत्री, कलेक्टर और अन्य अधिकारी अपने स्थान पर खड़े तो हो गए, लेकिन किसी की जुबान से राष्ट्रगान की आवाज नहीं निकली। सभी चुपचाप खड़े रहे, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि यह केवल औपचारिकता निभाने का एक और उदाहरण था।

क्या प्रशासन कोई सबक लेगा?

यह कार्यक्रम सरकार और प्रशासन के लिए एक आईना है, जो दिखाता है कि सरकारी योजनाओं में जनता की भागीदारी बढ़ाने में जिला प्रशासन कितना गंभीर है। अगर प्रशासन वास्तव में सुशासन को लेकर गंभीर होती तो यह कार्यक्रम जनता से भरा होता, इसमें आमजन की भागीदारी होती और योजनाओं पर खुलकर चर्चा होती, लेकिन जब जनता गायब है, प्रशासन सुस्त है और सरकार अपनी पीठ थपथपाने में ही व्यस्त है तो क्या इसे सुशासन कहा जा सकता है? कुल मिलाकर यह समारोह यह साबित करता है कि सुशासन का जश्न केवल सरकारी कागजों में ही मनाया जा रहा है। हकीकत इससे कोसों दूर है।

 

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