निर्देश के बावजूद जिला अस्पताल की मनमानी आई सामने
कोटपूतली-बहरोड़/सच पत्रिका न्यूज
अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाली 13 वर्षीय दुष्कर्म पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए जब सिस्टम ने आंखें मूंद ली, तब खुद अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव पवन जीनवाल को जिला अस्पताल पहुंचना पड़ा। चिकित्सकों की मनमानी के चलते दो बार अस्पताल के चक्कर लगाने के बाद भी जब पीडि़ता का गर्भपात नहीं हो पाया, तब एडीजे के हस्तक्षेप से मामला सुलझा और पीडि़ता को राहत मिली। जानकारी के मुताबिक, पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले में एक अभियुक्त ने अनुसूचित जाति की नाबालिग बालिका के साथ दुष्कर्म किया, जिससे वह गर्भवती हो गई। अब उसका गर्भकाल लगभग 12 सप्ताह का हो चुका था। इस गंभीर मामले को संज्ञान में लेते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जयपुर ने तुरंत हस्तक्षेप किया। प्राधिकरण के सचिव पवन जीनवाल ने पीडि़ता और उसके परिजनों से संपर्क कर उन्हें भावनात्मक, सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं पर काउंसलिंग प्रदान की। काउंसलिंग के पश्चात पीडि़ता और उसके परिजनों ने लिखित रुप में गर्भपात की सहमति दी। मेडिकल जांच आने के बाद सभी कानूनी औपचारिकताओं को पूरा कर लिया गया।
अस्पताल प्रशासन की मनमानी उजागर
जब पीडि़ता को गर्भपात के लिए जिला अस्पताल ले जाया गया तो चिकित्सकों ने कानूनी बहानों में उलझाकर गर्भपात से इनकार कर दिया। यही नहीं, वे बार-बार पुलिस से हाईकोर्ट के आदेश की प्रति मांगते रहे, जबकि 2003 के संशोधित चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार दुष्कर्म पीडि़ता को 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति है। इसके अलावा पिछले साल ही बाल अधिकारिता विभाग ने भी एक आदेश जारी कर ऐसे मामलों में 20 सप्ताह तक के गर्भ होने की स्थिति में एक पंजीकृत चिकित्सक और 20 से 24 सप्ताह तक के गर्भ होने की स्थिति में 2 पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा गर्भपात किया जा सकता है और इन चिकित्सकों को किसी न्यायालय अथवा प्राधिकारी का आदेश अपेक्षित नहीं है। इसके बावजूद डॉक्टरों की टालमटोल रवैये ने परिजनों को मानसिक रुप से बेहद परेशान किया।
एडीजे को करना पड़ा हस्तक्षेप
चिकित्सकों की अनदेखी की शिकायत जब प्राधिकरण तक पहुंची तो अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश पवन जीनवाल स्वयं बुधवार को राजकीय बीडीएम जिला अस्पताल पहुंचे और वहां मौजूद चिकित्सकों को कड़ी फटकार लगाई। इसके बाद ही पीडि़ता का सुरक्षित रूप से गर्भपात संभव हो सका। जीनवाल ने बताया कि पीडि़ता को पीडि़त प्रतिकर योजना के तहत शीघ्र ही आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाएगी। गौरतलब है कि यह मामला प्रशासनिक संवेदनशीलता और राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की तत्परता का उदाहरण है, जहां न्याय के लिए एक न्यायाधीश को खुद मैदान में उतरना पड़ा।
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