KOTPUTLI-BEHROR: जिंदगी से हार गई चेतना, मासूम की मौत से छाया शोक

KOTPUTLI-BEHROR: जिंदगी से हार गई चेतना, मासूम की मौत से छाया शोक

10वें दिन 220 घंटे बाद एनडीआरएफ का जवान बाहर लेकर निकला

मां की तबियत बिगड़ी, पथरा गई पिता व दादा की आंखें

कोटपूतली-बहरोड़/सच पत्रिका न्यूज
कोटपूतली के कीरतपुरा गांव में करीब 700 फिट गहरे बोरवेल में गिरी चेतना जिंदगी की जंग हार गई। बीते 23 दिसंबर को मासूम बालिका खेलते-खेलते बोरवेल में जा गिरी थी और उसी दिन से उसे बचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन चला दिया गया था। बुधवार को 10वें दिन करीब 220 घंटे तक चले रेस्क्यू अभियान के तहत चेतना को बाहर तो निकाल लिया गया, लेकिन वह बच न सकी। चेतना को बोरवेल से बाहर निकालते ही एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम से लैस एंबुलेस के जरिए बीडीएम जिला अस्पताल लाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। एनडीआरएफ की टीम ने बोरवेल के समानांतर एक सुरंग खोदकर बच्ची को बाहर निकाला। एनडीआरएफ के प्रभारी योगेश मीणा ने बताया कि बच्ची को अचेत अवस्था में निकाला गया है, जब उसे निकाला गया तब शरीर में कोई मूवमेंट नहीं था। बुधवार शाम 6 बजकर 25 मिनट पर तीन साल की चेतना को बोरवेल से बाहर निकाला गया। एनडीआरएफ का जवान महावीर जाट सफेट कपड़े में लपेटकर चेतना को बाहर लेकर आया। इसके तुरंत बाद चेतना को एंबुलेंस से कोटपूतली के बीडीएम अस्पताल ले जाया गया और वहां जांच के बाद चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। 3 वर्षीय चेतना 23 दिसंबर को 700 फीट गहरे बोरवेल में गिरकर 150 फीट पर फंस गई थी। देसी जुगाड़ से उसे रेस्क्यू टीमें केवल 30 फीट ऊपर ला सकी थी। मासूम बच्ची करीब 220 घंटे तक भूखी-प्यासी रही और आठ दिनों से उसका कोई मूवमेंट नजर नहीं आ रहा था। वैसे तो 10 दिन फंसी रही चेतना के परिजनों की उम्मीदें अब टूटने लगी थी, लेकिन बुधवार को जब उसकी मौत हो जाने की खबर मिली तो मां धोली देवी की तबियत खराब हो गई तो वहीं पिता भी फूट-फूटकर रोने लगा। उसके दादा की आंखें पथरा गई थी। चेतना के रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान जयपुर ग्रामीण सांसद राव राजेन्द्र सिंह, कलेक्टर कल्पना अग्रवाल, एसपी राजन दुष्यंत, विधायक हंसराज पटेल, राधा पटेल, एडीएम ओमप्रकाश सहारण, एसडीएम बृजेश चौधरी सहित अनेक महकमों के अधिकारी मौजूद रहे।

मिट्टी से पैक की चेतना की बॉडी

बुधवार शाम करीब 6 बजकर 25 मिनट पर जब चेतना को बाहर निकाला गया तो चेतना एक सफेद कपड़े में लिपटी हुई थी। रेस्क्यू ऑपरेशन करने वाले एनडीआरएफ के जवानों ने बताया कि चेतना की बॉडी मिट्टी के बीच फंसी हुई थी। बोरवेल में घुसने के बाद अंगुली से उसकी बॉडी के आसपास से मिट्टी हटाई और फिर उसे बाहर निकालकर लेकर आए। रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान कई तरह की दिक्कतें आ रही थी। पत्थर कटिंग के दौरान पत्थर के टुकड़े उछलकर आंखों पर आ रहे थे। सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। लेटकर पत्थर तोडऩे पड़ रहे थे। जहां बच्ची फंसी हुई थी, वहां से बोरवेल मुड़ा हुआ था। बच्ची नीचे जाते-जाते वहां फंस गई। गौरतलब है कि इससे पहले उसे निकालने के लिए कई कोशिशें फेल हो गई थी। पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान प्रशासन की प्लानिंग पर भी सवाल उठते रहे।

छावनी में तब्दील रहा अस्पताल परिसर

बोरवेल तक सुरंग बनाने में एनडीआरएफ को कामयाबी मिलने के बाद बुधवार को सुबह से चेतना को बाहर निकालने की तैयारियां शुरु कर दी गई थी। जिले के आधा दर्जन से अधिक पुलिस थानों का बल कोटपूतली बुला लिया गया। चूंकि, चेतना को बाहर निकालते ही अस्पताल लेकर आना था। ऐसे में सुबह करीब 10 बजे ही जिला अस्पताल को छावनी में तब्दील कर दिया गया। इस दौरान अनावश्यक लोगों की भीड़ हटा दी गई तो वहीं चौपहिया वाहनों का प्रवेश भी निषेध कर दिया गया था।

रात्रि को ही होगा पोस्टमार्टम

जांच के बाद अस्पताल के पीएमओ डा.चैतन्य रावत ने बालिका के मृत होने की घोषणा की। उन्होंने बताया कि बॉडी की हालत ठीक नहीं है। कलेक्टर के आदेश पर रात्रि को ही शव का पोस्टमार्टम किया जाएगा। इसके लिए विशेषज्ञों का एक मेडिकल बोर्ड गठित किया जा चुका है। पोस्टमार्टम के बाद ही शव के बारे में पूरी जानकारी मिल सकेगी।

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