KOTPUTLI-BEHROR: रामभद्राचार्य का आरक्षित वर्गों के संतों व संगठनों ने किया विरोध

KOTPUTLI-BEHROR: रामभद्राचार्य का आरक्षित वर्गों के संतों व संगठनों ने किया विरोध

जाति आधारित आरक्षण को समाप्त करने के बयान पर सरकार से पद्मविभूषण वापस लेने की रखी मांग

जयपुर/सच पत्रिका न्यूज़
हम केंद्र व राजस्थान सरकार से मांग करते हैं, कि रामभद्राचार्य से पद्मविभूषण वापस लिया जाए। साथ ही कानूनी कार्यवाई की जाए। यह कहना था डॉ. अम्बेडकर मेमोरियल वेलफेयर सोसायटी राजस्थान के अध्यक्ष जसवंत संपत राम, महासचिव जी एल वर्मा, कपिल मुनि, जे पी विमल और रामेश्वर सेवार्थी का, वो रामभद्राचार्य द्वारा जाति आधारित आरक्षण को समाप्त करने की मांग की बात का विरोध कर रहे थे। इन्होंने बताया कि कई संगठन ने विरोध किया है उनके भी प्रेस नोट प्राप्त हुए। इस मौके पर बी एल भाटी, रामेश्वर सेवार्थी, कपिल मुनि, जे पी विमल, जसवंत संपतराम अनिल गोठवाल, एच आर परमार, पी एन बुटीलिया, साध्वी रतनी बाई, उर्मिला वर्मा, जी एल वर्मा, मेहरडा, शिव शंकर छत्रपति और लक्ष्मी नारायण चर्मा सहित कई पदाधिकारी मौजूद रहे। उन्होंने बताया कि श्रीरामभद्राचार्य की ओर से सरकारी सेवाओं में जातिगत आरक्षण समाप्त करने की मांग की थी। जयपुर में रामकथा के दौरान उन्होंने से बात कही है जो कि पूरी तरह से गलत है और हम उसका विरोध करते हैं। उन्होंने जयपुर में धार्मिक कार्यक्रम में सरकार से जाति आधारित आरक्षण समाप्त करने की मांग की थी, जबकि आरक्षण एक धार्मिक विषय नहीं है।
कई वर्गों में बनी भय की स्थिति
ऐसे में श्रीरामभद्राचार्य की ओर से यह कहना कि स्वर्ण का बालक शत-प्रतिशत अंक लाकर भी जूता सिलाई करे और अनुसूचित जाति के बच्चे चार प्रतिशत लाकर कलेक्टर बन जाए ये सरासर झूठ है। यह कथन समाज और हिन्दू धर्म में विभाजन और विभिन्न जातियों के बीच द्वेषता फैलाने वाला है। इस प्रकार के कार्यक्रमों में राजस्थान सरकार के संविधानिक पदों पर बेठे हुए लोगों के शामिल होने से अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य आरक्षित बर्गों में भय व्याप्त हुआ है। ऐसे में रामभद्राचार्य के जाति आधारित आरक्षण समाप्ति की मांग के विरोध में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समाज के विभिन्न संगठनों एवं संतों विरोध प्रकर किया और सरकार से संज्ञान लेने हेतु अनुरोध किया।
आरक्षण अत्याचारों को समाप्त करने के लिए कहा था
जी एल वर्मा और अन्य पदाधिकारियों ने कहा, कि जाति आधारित संवैधानिक आरक्षण इन वर्गों पर सदियों से किए गए अत्याचारों को समाप्त करने, इन वर्गों को मुख्य धारा में लाने, इन वर्गों को उचित हुआ प्रतिनिधित्व देने, स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान हुए विभिन्न समझोतों आदिव है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी सही ठहराया जा चुका है।

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