एक मां ने देश को वीर दिया, दूसरी ने सपनों को जिंदा रखा
कोटपूतली-बहरोड़/सच पत्रिका न्यूज
मातृत्व सिर्फ जन्म देने तक सीमित नहीं होता, कभी वह देश को सपूत देती है तो कभी उसकी विरासत को सीने से लगाकर आगे बढ़ती है। कोटपूतली के नृसिंहपुरा गांव के शहीद श्रवण सिंह की मां केसर देवी और पत्नी गायत्री देवी ऐसे ही मातृत्व की दो मजबूत स्तंभ हैं, जो त्याग, साहस और स्नेह की जीवंत प्रतिमाएं हैं। एक ने वीर को जन्म देकर देश को समर्पित किया तो दूसरी ने उनके जाने के बाद दो मासूम बच्चों को अकेले पालकर मातृत्व की नई परिभाषा गढ़ी। शहीद श्रवण सिंह भारतीय सेना की राजपूत यूनिट में वर्ष 2002 में भर्ती हुए थे। उनका विवाह दो वर्ष बाद ही 2004 में गायत्री देवी के साथ हुआ था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। 15 नवंबर 2009 को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में उन्होंने वीरगति प्राप्त की। उस समय उनके दो छोटे बच्चे हिमांशु और अन्नू कंवर पिता के प्यार से अनभिज्ञ ही थे। शहीद श्रवण सिंह की मां केसर देवी के लिए यह क्षति असहनीय थी, पर उन्होंने अपने आंसुओं को छुपाकर बेटे की शहादत को गर्व का वस्त्र पहनाया। आज भी जब वह अपने बेटे की तस्वीर को देखती हैं तो आंखें भर आती हैं, लेकिन उनके चेहरे पर आत्मबल और देशभक्ति की दृढ़ रेखाएं साफ झलकती हैं। केसर देवी कहती हैं कि मेरा बेटा मरा नहीं है, वह आज भी हर फौजी के रुप में जिंदा है। मुझे गर्व है कि मैंने एक सपूत को जन्म दिया। दूसरी ओर, गायत्री देवी जिन्होंने युवावस्था में ही पति को खो दिया। वह टूटने के बजाय दो मासूम बच्चों की परवरिश में खुद को समर्पित कर दिया। उन्होंने श्रवण की यादों को जीवन की प्रेरणा बनाया और आज हिमांशु और अन्नू कंवर को सशक्त, शिक्षित और संस्कारी नागरिक बनाने में जुटी है। गायत्री कहती हैं कि श्रवण भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन मैं हर दिन उन्हें महसूस करती हूं। उनके नाम को जिंदा रखना ही अब मेरी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
नृसिंहपुरा गांव की ये दो महिलाएं मातृत्व की उस ऊंचाई पर हैं, जहां केवल संवेदनाएं नहीं, संकल्प होते हैं। एक ने वीर को जन्म दिया तो दूसरी ने उसकी विरासत को सींचा। यह मातृ दिवस इन दोनों को समर्पित होना चाहिए, क्योंकि इन्होंने न केवल अपने परिवार बल्कि पूरे देश के लिए मातृत्व का आदर्श प्रस्तुत किया है। जब हम मां के त्याग की बात करें तो हमें केवल कोमलता नहीं, बल्कि इन दोनों महिलाओं का अदम्य साहस भी याद रखना होगा। ये दोनों मांएं आज भी उस दीपक की तरह हैं, जो खुद जलकर अपने बच्चों और समाज को उजाला दे रही हैं।